युधिष्ठिर ने की थी लाखामंडल मंदिर की स्थापना, यहां पुनः जीवन मिलने की है मान्यता

Lakhamandal Temple Dehradun

उत्तराखंड के देहरादून जिले के जौनसर-बावार क्षेत्र में चमत्कारिक और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल लाखामंडल मंदिर (Lakhamandal Temple Dehradun) है। यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसका हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। यही कारण है कि यहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। लाखामंडल मंदिर इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित यह धार्मिक स्थल समुद्रतल से लगभग 1372 मीटर की ऊंचाई पर है। लाखामंडल नाम दो शब्दों लाख और मंडल से मिलकर बना है। लाख का मतलब कई और मंडल का अर्थ मंदिर या लिंगम होता है। लाखामंडल मंदिर में अलग-अलग रंगों और आकार के दो शिवलिंग स्थापित हैं।

लाखामंडल मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों का मानना है कि यह वही जगह है, जहां पर दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए ‘लक्षग्रह’ का निर्माण करवाया था। हालांकि पांडवों को शक्ति से देवता ने बचा लिया था। पांडव एक गुफा के माध्यम से भाग गए थे। गुफा लाखामंडल मंदिर से लगभग दो किलोमीटर दूर जाकर खत्म होती है। कहा जाता है कि अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां आए थे। इस दौरान स्वयं युधिष्ठिर ने शिवलिंग को स्थापित किया था। इस शिवलिंग को महामंडेश्वर नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि पांडवों ने यहां सवा लाख शिवलिंगों को बनवाया था। खास बात है कि यहां आज भी खुदाई में शिवलिंग प्राप्त होते जा रहे हैं। यह शिवलिंग अलग-अलग रंग के प्राप्त होते हैं।

युधिष्ठिर ने जहां शिवलिंग की स्थापना की थी, वहां आज एक सुंदर मंदिर बना हुआ है। लाखामंडल मंदिर को उत्तर भारतीय वास्तुकला शैली में बनाया गया है। शिवलिंग के ठीक सामने दो द्वारपाल पश्चिम की तरफ मुंह करके खड़े हुए दिखते हैं, जबकि दो द्वारपाल मंदिर के पीछे खड़े हुए है। इनमें से एक द्वारपाल का हाथ कटा हुआ है। हालांकि ऐसा क्यों है, यह आज भी रहस्य बना हुआ है। मान्यता है कि शिवलिंग के सामने खड़े द्वारपाल के सामने अगर किसी मृत व्यक्ति को रखकर उस पर पवित्र कल छिड़का जाता है तो वह कुछ समय के लिए पुन: जीवित हो उठता है। जीवित होने के बाद व्यक्ति भगवान का नाम लेता है और उसे गंगाजल प्रदान किया जाता है। गंगाजल ग्रहण करते ही उसकी आत्मा शरीर का त्याग कर देती है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार लाखामंडल मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित शिवलिंग पर जब कोई पानी डालता है तो वह चमकाने लगता है। इस दौरान श्रद्धालु को अगर शिवलिंग में अपनी छवि नजर आ जाए तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। लाखामंडल मंदिर को लेकर श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी होती है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि उन्हें आज तक कोई ऐसा भक्त नहीं मिला जिसकी जायज मांग पूरी नहीं हुई हो। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि अगर कोई स्त्री पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से महाशिवरात्रि की रात मंदिर के मुख्य द्वार पर बैठकर शिवालय के दीपक को एकटक निहारते हुए शिवमंत्र का जाप करती है, उसे एक साल के भीतर पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।

कैसे पहुंचें Lakhamandal Temple Dehradun

लाखामंडल पहुंचने के लिए सबसे पहले यहां से लगभग 128 किलोमीटर दूर देहरादून पहुंचना होता है। लाखामंडल से नजदीकी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा देहरादून में है। देहरादून आने के लिए देश के किसी भी हिस्से से सड़क, हवाई और रेल यातायात सुलभ है। देहरादून रेलवे स्टेशन दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, मुंबई, कोलकाता सहित देश के कई प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। देहरादून उत्तराखंड राज्य परिवहन की बसों द्वारा दिल्ली, शिमला, हरिद्वार, ऋषिकेश, आगरा और मसूरी सहित कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। देहरादून से आसानी से बस या टैक्सी से लाखामंडल पहुंचा जा सकता है।

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(Religious Places from The Himalayan Diary)

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