उत्तराखंड में समुद्रतल से 1600 मीटर की ऊंचाई पर पौड़ी से लगभग 37 किलोमीटर दूर खैरालिंग महादेव मुंडनेश्वर (Kheraling Mahadev Mundneshwar) का मंदिर है। खैरालिंग महादेव को मुंडनेश्वर महादेव भी कहा जाता है। इन्हें धवड़िया देवता के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि जिस पर्वत चोटी पर श्री खैरालिंग महादेव का मंदिर स्थापित है, वह मुंड (सिर) के आकार का उभरा हुआ है। तीन ओर से जो पर्वत श्रृखंलायें यहां आकर मिलती हैं, वह घोड़े की पीठ की तरह हैं और उनके मिलने वाली जगह पर सिर के रूप की आकृति बनी हुई है, जिसे मुंडन डांडा भी कहा जाता है। इसी के आधार पर इसे मुंडनेश्वर भी कहा गया है। इस मंदिर की स्थापना 1795 ईसवी में की गई थी। मंदिर में स्थापित लिंग खैर के रंग का है, जिस वजह से इसे खैरालिंग कहा जाता है।
मान्यता है कि खैरालिंग के तीन भाई ताड़केश्वर, एकेश्वर और विन्देश्वर (विनसर) हैं, इनकी एक बहन काली भी हैं जो खैरालिंग के साथ रहती हैं। वहीं खैरालिंग मंदिर में काली का थान भी है। भगवान शिव कभी भी बलि नही लेते हैं, लेकिन खैरालिंग मंदिर में बलि दी जाती है। इस बारे में कहा जाता है कि खैरालिंग के साथ काली भी हैं, इसीलिए यहां बलि दी जाती है। प्रतिवर्ष यहां ज्येष्ठ माह में मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुबलि दी जाती है। दो दिन के इस मेले में पहले दिन ध्वजा चढ़ाई जाती है और दूसरे दिन बलि दी जाती है।
खैरालिंग कौथीग मेले का अनुष्ठान मेले से 2 दिन पहले शुरू हो जाता है। 2 दिन तक रात को होने वाला यह अनुष्ठान अलौकिक होता है। वर्तमान समय में मंदिर गढ़वाली वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। शैव के साथ शाक्त मतावलंबियों की समान रूप से सहभागिता बनी रहे, इस उद्देश्य से भगवान शंकर के साथ शक्ति के रूप में मां काली की स्थापना की गई है। शिवालय में नंदी की सवारी करते भगवान शंकर की पत्थर की मूर्ति भी स्थापित की गई है। मंदिर के बाहर दीवार पर मां काली की मूर्ति उकेरी गई है। काली मां की मूर्ति कुछ खंडित अवस्था में है।
माना जाता है कि उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में सन 1803 से 1814 तक जब गढ़वाल गोरखाओं के आधीन था, उस समय यह मूर्ति खंडित की गई थी। मंदिर का शांत व शीतल स्थान बड़ा ही रमणीक है। सिद्धपीठ लंगूरगढ़ी, एकेश्वर महादेव, विन्सर महादेव, रानीगढ़, दूधातोली, जड़ाऊखांद, दीवाडांडा, ताड़केश्वर महादेव और विस्तृत हिमालय यहां से दिखाई देते हैं। इसके अलावा मुण्डनेश्वर महादेव में हर साल 6 और 7 जून को मेले का आयोजन होता है, जिसे खैरालिंग मेले के नाम से जाना जाता है। इसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं।
कैसे पहुंचें Kheraling Mahadev Mundneshwar
यह मंदिर पौड़ी से करीब 37 किलेमीटर और कोटद्वार से लगभग 105 किलोमीटर दूरी पर कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर है। जहां कोटद्वार-सतपुलि-पाटीसैण और श्रीनगर-पौड़ी-परसुंडाखाल होते हुए पहुंचा जा सकता है। मंदिर के नजदीक कोई रेलवे स्टेशन नही हैं। यहां से 105 किलोमीटर की दूरी पर कोटद्वार और 115 किलोमीटर दूरी पर ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। यहां से निकटतम हवाई अड्डा जॉलीग्रांट (देहरादून) है, जो मंदिर से लगभग 159 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से आप बस से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
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(Religious Places from The Himalayan Diary)
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