हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के नजदीक कल्पा से लगभग 15 किलोमीटर दूर पवित्र किन्नर कैलाश पर्वत (Kinner Kailash) है। इस पर्वत को तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के बाद दूसरा बड़ा कैलाश पर्वत माना जाता है। समुद्र तल से 24 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित किन्नर कैलाश पर्वत सदियों से हिंदू व बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। यहां की खास बात यह है कि पर्वत पर प्राकृतिक शिवलिंग है। हर साल बड़ी संख्या में देशभर से श्रद्धालु किन्नर कैलाश पर्वत पर शिवलिंग के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। इस स्थान को भगवान शिव का शीतकालीन प्रवास स्थल भी माना जाता है। यहां आप प्राकृतिक रूप से उगने वाले ब्रह्म कमल के हजारों पौधों को देख सकते हैं।
किन्नर कैलाश पर्वत को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि महाभारत काल में इस पर्वत को इन्द्रकील पर्वत के नाम से जाना जाता था। यह वही पर्वत है जहां पर भगवान शंकर और अर्जुन के बीच युद्ध हुआ था और अर्जुन को पासुपातास्त्रकी प्राप्ति हुई थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार पांडवों ने अपने वनवास का अंतिम समय इसी पर्वत पर गुजारा था। किन्रर कैलाश को पंच कैलाश पर्वतों – कैलाश मानसरोवर, आदि कैलाश, श्रीखंड कैलाश और मणिमहेश में गिना जाता है। किन्नर कैलाश पर्वत पर मौजूद शिवलिंग दिन में कई बार अपना रंग बदलता है। शिवलिंग सूर्योदय से पहले सफेद दिखता है, सूर्योदय होने पर पीला और मध्याह्न काल में लाल हो जाता है। इसके बाद फिर पीला और सफेद होते हुए शाम तक काला हो जाता है।
किन्नौर वासी शिवलिंग के रंग बदलने को दैविक शक्ति का चमत्कार मानते हैं, जबकि बुद्धिजीवियों का कहना है कि सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों में पड़ने से इस प्राकृतिक शिवलिंग का रंग बदलता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां आने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। किन्नर कैलाश पर स्थित शिवलिंग की ऊंचाई 40 फीट और चौड़ाई 16 फीट है। हर वर्ष सैकड़ों शिव भक्त जुलाई व अगस्त में जंगल व खतरनाक दुर्गम मार्ग से हो कर किन्नर कैलाश पहुंचते हैं। हालांकि साल 1993 से पहले यहां आम लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध था, लेकिन 1993 में इसे आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। यहां से लगभग दो किलोमीटर दूर रेंगरिकटुगमा में एक बौद्ध मंदिर है। यहां लोग मृत आत्माओं की शांति के लिए दीप जलाने पहुंचते हैं।
कैसे पहुंचें Kinner Kailash
किन्नर कैलाश के लिए किन्नौर जिला मुख्यालय से 7 किलोमीटर दूर पोवारी से सतलुज नदी पार कर तंगलिंग गांव से होकर जाना पड़ता है। यात्रा के दौरान भक्त पार्वती कुंड में स्नान करने के बाद 24 घंटे की कठिन राह पार कर किन्नर कैलाश पहुंचते हैं। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डाल दिया जाए, तो हर मुराद पूरी होती है। श्रद्धालुओं को पहाड़ियों और जंगल से गुजर कर अपने गंतव्य तक पहुंचना पड़ता है। श्रद्धालु राष्ट्रीय राजमार्ग 22 के माध्यम से किन्नौर पहुंच सकते हैं। किन्नौर जाने के लिए शिमला, रामपुर, रोहतांग दर्रे सहित कई क्षेत्रों से सीधी बस सेवा उपलब्ध हैं। किन्नौर से नजदीकी हवाई अड्डा 257 किलोमीटर दूर शिमला में है। हालांकि यहां के लिए रेगुलर फ्लाइट्स नहीं हैं। लिहाजा शिमला से 125 किलोमीटर दूर चंडीगढ़ एयरपोर्ट बेहतर ऑप्शन है। यह हवाई अड्डा नई दिल्ली, मुंबई जैसे प्रमुख शहरों के साथ जुड़ा हुआ है। पर्यटक रेल मार्ग द्वारा किन्नौर से 344 दूर कालका रेलवे स्टेशन तक आ सकते हैं। इसके बाद पर्यटक कालका से छोटी लाइन पर चलने वाली कालका-शिमला रेल की मदद से शिमला तक भी आ सकते हैं। इसके आगे सड़क मार्ग से आना होगा।
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