उत्तराखंड के इतिहास में प्राचीन सिद्धपीठों में से एक है श्रीनगर के पास गौरादेवी देवलगढ़

Gaura-Devi-Temple-Devalgarh

धार्मिक दृष्टि से उत्तराखंड हमेशा से ही श्रद्धालुओं के आर्कषण का केंद्र रहा है, जिस वजह से यहां श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। उत्तराखंड के पौड़ी जिले में देवलगढ़ खूबसूरत पहाड़ी पर स्थित है। देवलगढ़ का उत्तराखंड के इतिहास में अपना अलग ही महत्व है। इस शहर का नाम कांगड़ा के राजा देवल के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने इस शहर की स्थापना की थी। श्रीनगर से पहले, 16वीं शताब्दी में अजय पाल के शासनकाल के दौरान देवलगढ़ गढ़वाल साम्राज्य की राजधानी था। अपने अतीत के कारण, यह शहर पूजनीय मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के गौरा देवी (गैरजादेवी) मंदिर (Gaura Devi Temple) की गणना प्राचीन सिद्धपीठों में की जाती है। जबकि राज राजेश्वरी मंदिर सुंदर प्राचीन गढ़वाली वास्तुकला को दर्शाता है।

देवलगढ़ का पहाड़ी शहर तब लोकप्रिय हुआ, जब गढ़वाल राज्य के राजा अजय पाल ने अपनी राजधानी को चांदपुर गढ़ी से देवलगढ़ स्थानांतरित कर दिया। 1512-1517 तक श्रीनगर में स्थानांतरित होने से पहले यह गढ़वाल साम्राज्य की भागदौड़ वाली राजधानी बनी रही। उसके बाद भी, शाही दल देवगढ़ में गर्मी और श्रीनगर में सर्दियां बिताता था। ऐसी थी देवलगढ़ शहर की खूबसूरती। वर्तमान में यहां कई ऐतिहासिक मंदिर हैं, जो देवलगढ़ की खूबसूरती को और भी बढ़ाते हैं। देवलगढ़ खासतौर पर प्राचीन मंदिरों के समूह के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें मध्ययुगीन काल में बना हुआ माना जाता है। मंदिरों की वास्तुकला अति सुंदर गढ़वाली वास्तुकला से प्रभावित है। देवलगढ़ में कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें सत्यनाथ मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, सोमा की माण्डा, श्रीकृष्ण मंदिर, भैरव गुफा और दत्तात्रेय मंदिर हैं।

सातवीं शताब्दी का बना गौरा देवी (गैरजादेवी) मंदिर प्राचीन वास्तुकला का अतुलनीय उदाहरण है। राजराजेश्वरी गढ़वाल के राजवंश की कुलदेवी थीं, इसलिये उनकी पूजा देवलगढ़ स्थित राजमहल के पूजागृह में होती थी। जनता के लिये एक और मंदिर की आवश्यकता महसूस करते हुये गौरा मंदिर का निर्माण कराया गया। इस मंदिर में शाक्त परंपरा प्रचलित रही है। यहां मुख्य रूप से भगवती गौरी व सिंह वाहिनी देवी की प्रतिमा स्थापित हैं। यहां से हिमालय का बड़ा मनोहारी दृश्य दिखाई देता है। यह स्थानीय निवासियों की कुलदेवी हैं। यहां हर साल बैशाखी को विशाल मेले का आयोजन होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि कुबेर ने गौरा माता का आशीर्वाद प्राप्त कर इस मंदिर का निर्माण कराया था। गढ़वाल के राजवंश की कुलदेवी राजराजेश्वरी और सत्यनाथ के लिये प्रसिद्ध देवलगढ़ 6 साल तक गढ़वाल राज्य की राजधानी रह चुका है।

कैसे पहुंचें Gaura Devi Temple

श्रीनगर से देवलगढ़ की दूरी लगभग 19 किलोमीटर है। श्रीनगर पहुंचकर आप किसी भी लोकल टैक्सी के जरिए मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यहां से नजदीकी रेलवे स्टेशन 118 किलोमीटर दूर ऋषिकेश और 135 किलोमीटर दूर कोटद्वार में है। दोनों जगह से आप आसानी से टैक्सी या बस से देवलगढ़ पहुंच सकते हैं। देवलगढ़ से नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, यहां से देवलगढ़ की दूरी लगभग 140 किलोमीटर है। यहां से आप आसानी से देवलगढ़ तक जा सकते हैं।

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(Religious Places from The Himalayan Diary)

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