उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक देवलसारी महादेव मंदिर (Devalsari Mahadev Mandir) बौराड़ी, नई टिहरी की ढाल पर स्थित है। लगभग 200 साल पुराना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। जाखणीधार क्षेत्र के इस मंदिर में कुदरत का अनोखा चमत्कार देखने को मिलता है। जलेरी नहीं होने से इस मंदिर की आधी नहीं, बल्कि पूरी परिक्रमा की जाती है। इस मंदिर परिसर में तीन छोटे, दो मध्यम और एक मुख्य मंदिर है। छोटे वाले मंदिरों में से एक “भैरवबाबा का मंदिर” है तथा बाकी के दो मंदिरों में स्थापना संबधी मतभेद के कारण किसी मूर्ति की स्थापना नहीं हो पायी है।
बायीं तरफ जो दो मध्यम आकार के बड़े मंदिर हैं, उनमें से एक में भगवान शिव तथा माता पार्वती की वरद हस्त मुद्रा में मूर्तियां स्थापित हैं। दूसरे में मां त्रिपुरी सुंदरी दुर्गा, विघ्नहर्ता गणेश और मां काली की भव्य मूर्तियां हैं। इसके अलावा मुख्य मंदिर में एक विशाल शिवलिंग और उसके पीछे माता लक्ष्मी और विघ्नहर्ता गणेश जी की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर के बारे में मान्यता है कि मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले हजारों लीटर जल की निकासी कहां होती है, इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठा है। दुनियाभर में तमाम शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना और जलाभिषेक के बाद शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का विधान है। यानी जलेरी को लांघा नहीं जाता है। अगर बात की जाए जलाभिषेक की परंपरा की तो यह अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। प्राचीन समय से चली आ रही परंपराओं के अनुसार आज भी मंदिर का पुजारी ही भक्तों के लाए हुए जल को खुद शिवलिंग पर अर्पित करता है।
मंदिर की स्थापना (पुरानी टिहरी) में कई वर्ष पहले हुई थी। कहा जाता था कि किसी चरवाहे की गाय जंगल की कुछ झाड़ियों में रोज स्वयं दूध गिरा कर आया करती थी। चरवाहे ने जब उस स्थान पर जाकर देखा तो पाया कि झाड़ियों में एक शिवलिंग था, जिस पर गाय रोज दूध गिरा देती थी। चरवाहे ने इस घटना के बारे में राजा को सूचित किया और राजा ने कुछ बुद्धिजीवियों की सलाह पर वहां एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर दिया और महंत श्री गोपाल गिरि जी के किसी एक पूर्वज को मंदिर का पुजारी नियुक्त कर दिया।
कहा जाता है कि जब गोरखाओं ने उत्तराखंड पर आक्रमण किया, तो उन्होने यहां के कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। इसी क्रम में जब वे इस मंदिर तक पहुंचे, तो इस मंदिर को भी तोड़कर शिवलिंग को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया, लेकिन बहुत खोदने के बाद भी शिवलिंग को पूरा नहीं निकाल पाये। अंत में उन्होने शिवलिंग तोड़ने का प्रयास किया। कहा जाता है कि शिवलिंग पर प्रहार करते ही शिवलिंग का एक हिस्सा टूटा और टिहरी से कुछ दूर देवलसारी में गिरा, जहां आज देवलसारी मंदिर का शिवलिंग स्थापित है।
कैसे पहुंचें Devalsari Mahadev Mandir
सड़क मार्ग- देहरादून से न्यू टिहरी के दूरी लगभग 98.8 किलोमीटर है, जहां पहुंचने में तीन से चार घंटे का समय लगता है। यहां से मंदिर लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग- टिहरी तक रेल की कोई सुविधा नहीं है। ऐसे में आप हरिद्वार या फिर देहरादून तक ही रेल का सफर तय कर सकते हैं। जिसके बाद आप बस के जरिए यहां पहुंच सकते हैं।
वायु मार्ग- देहरादून स्थित जौलीग्रांट एयरपोर्ट तक आप किसी भी विमान के जरिए पहुंच सकते हैं। यहां से मंदिर तक का सफर बस द्वारा तय करना होगा।
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(Religious Places from The Himalayan Diary)
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