देवभूमि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के हनोल गांव में भगवान शिवजी के अवतार महासू देवता को समर्पित एक प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर (Mahasu Devta Temple Uttarakhand) है। प्रकृति के मनोरम और सुरम्य वातावरण के बीच मौजूद महासू देवता का मंदिर हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर है। यह मंदिर कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है। मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को संजोए हुए इस मंदिर को 9वीं शताब्दी में बनाया गया था। वर्तमान में यह मंदिर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के संरक्षण में है। महासू देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है। चारों महासू भाइयों के नाम हैं – बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू और चालदा महासू। इन्हें भगवान शिव का रूप माना जाता है।
महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के इष्ट देव हैं। हिमाचल और उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मंदिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है। आज भी महासू देवता में श्रद्धा रखने वाले लोग न्याय की गुहार लगाते हुए मंदिर पहुंचते हैं और अपनी समस्याओं का समाधान मांगते हैं। महासू देवता के इस प्रसिद्ध मंदिर के गर्भगृह में भक्तों का जाना मना है। सिर्फ मंदिर का पुजारी ही मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर सकता है। मंदिर में एक पवित्र ज्योति है, जो सालों से जल रही है। मंदिर के गर्भगृह से पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां से निकलती है और वह कहां जाती है यह आज तक पता नहीं चल पाया है। दिलचस्प बात है कि महासू देवता के मंदिर में हर साल राष्ट्रपति भवन से नमक आता है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां आकर सच्चे दिल से कुछ मांगते हैं, तो मनोकामना जरूर पूरी होती है।
कथा के अनुसार पौराणिक काल में किरमिर नामक राक्षस ने इस क्षेत्र में आतंक मचाते हुए हुणा भट्ट नामक ब्राह्मण के सात बेटों को खा लिया था। इस पर हुणा भट्ट की पत्नी कृतिका ने राक्षस से रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुन भगवान शिव ने किरमिर राक्षस से उसकी दृष्टि छीन ली। इसके बाद हुणा भट्ट और कृतिका ने देवी हठकेश्वरी से प्रार्थना की। देवी हठकेश्वरी ने उनसे कश्मीर के पर्वतों पर जाकर भगवान शिव की स्तुति करने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने ऐसा किया तो भगवान शिव ने उनसे वापस अपनी भूमि पर लौटकर शक्ति का अनुष्ठान करने के लिए किया।इस पर हुणा भट्ट और कृतिका ने अपनी धरती पर पहुंचकर देवी की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि उन्हें हर रविवार को अपने खेत के एक भाग को चांदी के हल और सोने के जूतों के साथ जोतना होगा। ऐसा करने से महासू भाई अपने मंत्रियों और सेना के साथ प्रकट होंगे और समस्त क्षेत्र को दानवों से मुक्त कर देंगे। हुणा भट्ट और कृतिका ने जब ऐसा किया, तो पहले चार हफ्ते में चारों महासू देवता एक-एक कर प्रकट हुए। इसके बाद पांचवें हफ्ते में देवलाड़ी देवी अपने मंत्रियो और दैवीय सेना के साथ भूमि से प्रकट हुई। देवलाड़ी देवी ने अपनी सेना के साथ मिलकर इस क्षेत्र से दानवों का सफाया कर दिया।
कैसे पहुंचें Mahasu Devta Temple Uttarakhand
यह प्रसिद्ध मंदिर हनोल गांव में स्थित है। हनोल गांव देहरादून से लगभग 190 किलोमीटर और मसूरी से 156 किलोमीटर दूर है। हनोल गांव से नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन देहरादून में है। यहां से हनोल गांव पहुंचने के लिए वाहनों की सुविधा उपलब्ध हैं।
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Web Title mahasu-devta-temple-in-uttarakhand-is-precious-heritage-of-art-and-culture
(Religious Places from The Himalayan Diary)
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