हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में खूबसूरत शहर पालमपुर से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर भगवान शिव का प्रसिद्द और भव्य प्राचीन मंदिर बैजनाथ धाम है। यह धार्मिक स्थल भगवान शिव के बारह ज्योतिलिंगों में से एक है। इस प्रसिद्द धार्मिक स्थल से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर एक और शिव का प्रसिद्ध धाम है, जिसका नाम महाकाल मंदिर (Mahakal Temple Baijnath) है। यह एक रहस्यमयी और प्राचीन धार्मिक स्थल है, जिसका संबंध महाभारत काल से रहा है। महाकाल मंदिर में भगवान शिव तेजोलिंग रूप में विराजमान हैं।
मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग भगवान शिव के तेज से प्रकट हुआ था। दावा किया जाता है कि यह एकमात्र स्थान है, जहां पर भगवान शिव तेजोलिंग रूप विराजमान हैं। हिमाचल प्रदेश के कई मंदिरों की तरह इस मंदिर को लेकर भी मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों ने करवाया था। मंदिर का निर्माण करने के बाद पांडवों ने माता कुंती के साथ यहां पर महाकाल की आराधना की थी। इस मंदिर को अघोरी साधकों और तंत्र विद्या का केंद्र भी माना जाता है। माना जाता है कि मंदिर में भगवान शिव के साथ अपरोक्ष रूप से महाकाली का भी वास है।
इस मंदिर का इतिहास जालंधर राक्षस से जुड़ा है। भगवान शिव ने जालंधर राक्षस को वरदान दिया था कि काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। वरदान मिलने के बाद जालंधर देवी-देवताओं को परेशान करने लगा। जालंधर की मौत का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रत धर्म में है। ऐसे में भगवान शिव ने भगवान विष्णु से माया रचने के लिए कहा। भगवान विष्णु की माया के कारण राक्षस की पत्नी का पतिव्रत धर्म टूट गया। इसके बाद भगवान शिव उसे मारने लगे, तो जालंधर ने कहा कि आपने मुझे वरदान दिया था कि मुझे काल नहीं मार सकेगा। इस पर भगवान शिव ने महाकाल का रूप धारण किया और उसका वध कर दिया। इस दौरान जालंधर ने कहा कि मेरा वध जहां भी हो, वह पीठ मेरे नाम से विख्यात हो। साथ ही वहां पर भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजमान हों। इसके चलते इस क्षेत्र को जालंधर पीठ के नाम से भी जाना जाता है।
महाकाल मंदिर से जुड़ा एक रहस्य यह है कि यहां शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला जल और दूध बाहर निकलने के बजाय शिवलिंग में ही समा जाता है। यह जल और दूध कहां जाता है, इस रहस्य को कोई समझ नहीं पाया है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि सप्तऋषि जब इस क्षेत्र के प्रवास पर थे, तब उन्होंने यहां पर सात कुंडों की स्थापना की थी। इनमें से चार कुंड (ब्रह्म कुंड, विष्णु कुंड, शिव कुंड और सती कुंड) आज भी मंदिर में मौजूद हैं, वहीं तीन कुंड (लक्ष्मी कुंड, कुंती कुंड और सूर्य कुंड) मंदिर परिसर के बाहर हैं। पहले यहां पर श्मशानघाट भी हुआ करता था। क्षेत्र की 52 पंचायतों के लोगों का यहां पर अंतिम संस्कार होता था। हालांकि बाद में यह परंपरा बदल दी गई और श्मशान घाट को मंदिर के बाहर स्थापित किया गया। पहले ऐसी मान्यता थी कि अगर यहां कोई शव जलने न आए, तो घास का पुतला जलाया जाता था।
कैसे पहुंचें Mahakal Temple Baijnath
बैजनाथ धाम से नजदीकी हवाई अड्डा लगभग 60 किलोमीटर दूर कांगड़ा गग्गल में स्थित है। यहां से निकटतम छोटी लाइन का स्टेशन बैजनाथ में है, जो 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जबकि नजदीकी ब्रॉडगेज रेलवे स्टेशन पठानकोट रेलवे स्टेशन है, जो बैजनाथ धाम से 133 किलोमीटर की दूरी पर है। सड़क मार्ग द्वारा भी आसानी से पालमपुर होते हुए बैजनाथ पहुंचा जा सकता है।
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(Religious Places from The Himalayan Diary)
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